Kumawat ka chore rajasthani song Mk status
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कुमावत कुंभलगढ़ के वंशज हैं जिनका परम्परागत कार्य भवन (स्थापत्य) निर्माण हैं। दुर्ग, क़िले, मंदिर इत्यादि के निर्माण व मुख्य शिल्प कला एवम् चित्रकारी की देखरेख का काम कुमावत समाज के लोगों द्वारा ही किया जाता था। कुछ लोग अज्ञानतावश कुमावत और कुम्हार को एक ही समझ लेते है, लेकिन दोनों अलग-अलग जातियां है। कुमावत जाति के अधिकांश लोग शुरू में शिल्प कला वास्तुकला भवन बनाने का काम करते थे, जबकि कुम्हार जाति के लोग मिट्टी के बर्तन बनाने का काम करते थे।
कुमावत क्षत्रिय समूह का गठन करने का दावा करते हैं। और उनमें से अधिकांश मारवाड़ क्षेत्र में केंद्रित हैं। उन्हें अलग-अलग नामों से जाना जाता है जैसे मारू कुमावत, मेवाड़ी कुमावत, चेजारा कुमावत, आदि। कुमावत को नायक और हुनपंच के नाम से भी जाना जाता है। इस समुदाय के लिए नृवंशविज्ञान संबंधी साक्ष्य रानी लक्ष्मी चंदाबत द्वारा लिखित बागोरा बटों की गाथा और कर्नल टॉड द्वारा लिखित एनल्स एंड एंटिक्विटीज़ में उपलब्ध हैं। शेरिंग (1882) का कहना है कि कुमावत जयपुर के कछवाहा कुलों में से एक है। कुमावत खुद को सूर्यवंशी मानते हैं। यह समाज जयपुर से अपना त्रैमासिक
प्रकाशन कुमावत क्षत्रिय हिन्दी में भी निकालता है।[1]
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